सौतेला बाप ( भाग - १ )
अध्याय -1
प्रस्तुत कहानी आंचलिक परिवेश और पुराने दशकों के परिवेश पर आधारित है। इसमें दिखाए गए घटना और किरदार काल्पनिक है किंतु उनके माध्यम से उस ज़माने के सामाजिक कुरीतियो का दमन जैसे जाति वाद और विधवा विवाह और गांव के भोलेपन का एवम् समाज में आती नई क्रांति का कथानक वर्णन किया गया है। इस कहानी के सर्वाधिकार लेखिका के पास सुरक्षित है तो बिना अनुमति के उसके कथानक या घटनाओं की नकल नही किया जा सकता।
ग्रीष्म ऋतु के बाद की बरसात के बाद अब शरद ऋतु आयी है।कितना मनोहर और सुहावना प्रभात है। माहौल की ठंडक से पेड़ - पालों में भी कुछ अजीब रौनक है ,आसमान में सूर्य देवता आज कुछ अनमने मन से गायब है और झोपड़े के द्वार पर खड़ी बातों को सुनती एक बाली उम्र की विधवा खड़ी थी और कुछ लोग एक बुझे हुए अलाव के सामने कुछ गंभीर मुद्दे पर चर्चा - टिप्पणी कर रहे और वहीं आंगन में कुछ अबोध बालक एक बच्चे को चिढ़ा रहे थे।
मधुआ चिढ़कर बोला - " नहीं!...कोई नहीं बोलेगा मेरा सौतेला बाप आ रहा।"
" ऐसे कैसे ना बोले , माई बोली रही... कि मधुआ की मां का ब्याह हो रहा अब मधुआ का सौतेला बाप आएगा।"
" हां! हां!" उस एक बालक के सुर में बाकी बच्चे भी सुर अलापने लगे।
पूरे कुनबे में ये बात आग की तरह फैल गई थी कि मधुआ का सौतेला बाप आ रहा। मधुआ की मां एक बाली उम्र की विधवा थी जिसका पति एक बार कुएं की मरम्मत करने गया मगर दुबारा कभी अपने पांव पर वापस न आया।अभी दो माह ही हुए थे मधुआ के बाप के देहांत को।एक बार जो कुएं में गया तो प्राण पखेरु उड़ गए फिर दुबारा किसी ने हिम्मत न की उस कुएं में जाने की क्योंकि आज भी कुनबे का भरोसा था की मधुआ का बाप उसी कुएं से सबको झांकता है और कोई उसके भीतर झाँकने गया तो उसे खींच धरेगा। मधुआ ख़ुद उस कुएं के पत्थरों पर अब खेलने न जाता।जाए भी क्यों?उसकी माई अब उसे वहां जाने ही ना देती तो क्यों सुबह सुबह वो गालियां खाए अपनी माई की बस यहीं सोच मधुआ घर के चौखट पर बैठने अपने उस्तादप्रसाद - जो की उसके लकड़ी का घोड़ा था उससे खेलता।उस्तादप्रसाद एक रात नशा पत्ती के मदहोशी में मधुआ का मरा हुआ बाप कहीं से ले आया और थमा दिया मधुआ को। मधुआ का मरा हुआ बाप - कलुआ - अपने कुनबे का सबसे खास व्यक्ति था जिसका काम दिहाड़ी मजदूरी करके गांव के उन शरीफों के साथ कुनबे के छोर पे बने मधुशाला में जाकर अपने जिंदगी का खास लम्हे जीता और सबको जियाता।कलुआ सारे गांव में बदनाम था ,वो एक दिन काम करता तो बाकी दिन आराम करता।काम करते करते चिलम को तो मानो लत लगी पड़ी थी उसे मजदूरी ख़ूब मिलती मगर घर के चौखट तक आते आते पैसा गायब।कुनबे के वो लोग कलुआ की मौत का दुख प्रकट करते हुए उसी मधुशाला में बैठे नशा पत्ती कर ठहाके लगा रहे थे।और आज मधुआ की माई का ब्याह कुनबे के बाहर वाले गांव में हो रहा था और लड़का ख़ुद मधुआ के गांव रहने आ रहा था , गांव के कुछ बुद्धिजीवियों द्वारा दिया गया प्रस्ताव था कि अब मधूआ की अम्मा को ब्याह कर लेना चाहिए , अब बोलो भला!इतनी कच्ची उम्र में विधवा होना , ज़रूर कोई बड़ा पाप किया होगा तभी पति चल बसा अब दुबारा ब्याह करके उस अनाथ लड़के की जिंदगी भर सेवा सभाकर करना तब जाकर कहीं पाप धुलेगा मुई! मधुआ की माई अबोध मन की शांत औरत , दया धर्म वाली महिला जिसके लिए उसके पति परमेश्वर का मरना उसके लिए उसके अभाग का कारण था अब तो जीवन का एक मात्र लक्ष्य था अपने पति परमेश्वर की सेवा करना और उसके चरणों की धूल में मर मिट जाना।वहीं मधुआ को उसके ही कद और उम्र वाले बालकों ने सब अच्छे से आँखो पर सौतेले बाप के निर्दई! निर्मोही! होने की अच्छी पट्टी पढ़ाई थी जिसके कारण अब मधुआ ने ठान लिया वो उस सौतेले बाप के साथ घोड़ा गाड़ी वाला खेल नहीं खेलेगा।वहीं पूरे गांव को मधुआ के सौतेले बाप को देखने की इच्छा इतनी उमड़ रही थी कि बस कब बारात आए और कुनबे की औरते साड़ी के आंचल में मुंह छिपाए देख पाए मधुआ के सौतेले बाप को। मधुआ अपने पुराने बाप के बड़ी सी गंजी पहने इधर से उधर अपना घोड़ा लिए खेल रहा था जब उसके मित्रों ने आकर उसे सूचना दी फिर क्या लग गई तिनके के ढेड़ में आग की चिंगारी।
" देखना!...तेरा सौतेला बाप बड़ा निर्मोही होगा।"
मधुआ अपने मासूम से चेहरे पर टपकते पसीने को पोंछने हुए कहा -" तो?"
" तुझे डर नहीं लग रहा?"
" डर की बात का , मैं तो उसे बेर तोड़ने वाले पत्थरों से भगा दूंगा तुम सब देखना।"
" वो तो तब पता चलेगा ,जब वो तेरे हाथ पांव जला कर मरेगा और तेरी माई का दूसरा बेटा आएगा वो तुझे प्यार ना देगी अब।"
" मगर वो मेरी माई है!" मधुआ गुस्से और परेशानी से बोला।
" अब ना रही...तेरा सौतेला बाप उसे अपने बस में कर लेगा।"
" हां! हां! उसके बाद हम तेरे होने वाले भाई के साथ खेलेंगे।"
" बहन हुई तो?" उन्ही में से एक लड़का अपने खिसकते पैजामे को पकड़ता बोला।
एक लड़का बड़े ही गंभीरता से कहा -" अरे!...पूजा मंतर होगा ,तो लड़का ही होवेगा ऐसा माई - बापू कहते है।"
" मैं हां ही न बोलूंगा ,तब माई ना करेगी ब्याह।"
" अब कुछ ना हो सकता।"
" क्यों?" मधुआ सवाल किया।
" टमटम पर बैठे आ रहा तेरा सौतेला बाप!"
मधुआ भागता हुआ कुनबे के चौक पर जाकर देखा , तो एक बड़ी सी टमटम सजी धजी कुनबे में चली आ रही थी और उसके पीछे कुनबे के सभी बच्चे मधुआ का सौतेला बाप , मधुआ का सौतेला बाप चिल्ला कर दौड़ रहे थे मधुआ की पथराई हुई आंखे बस उस टमटम को देखते चली जा रही थी उसे अब भय हो रहा था आख़िर पूरे कुनबे ने कहा था सौतेला बाप उसे मरेगा ,उसके मित्रों ने बताया था की निर्दई! निर्मोही ! बेदर्दी ! होगा मधुआ का बाप अब तो बस इंतजार था उस निशाचर से दिखने वाले सौतेले बाप के आने का मधुआ को पता तो नहीं था सौतेला बाप होता कैसा है और न ही उन निश्छल प्रवृत्ति के बालकों को , जिनके मन में बस सौतेले बाप का डर बिठा गया था की वो आया तो मधुआ को मारेगा और उसकी मां से दूर कर देगा , तो सभी ने बस एक छवि बनी कि सौतेला बाप हाथों में छड़ी और चेहरे पर गुस्सा लिया आएगा मधुआ को मारने।
टमटम मधुआ के कोठर के समाने रुकी सबकी आंखे मेले में आए बंदर को तरह इधर से उधर करतब करने लगी , मक्खियों के भिनभिनाने के तरह आवाजे हर जगह फैल गई और तभी हाथो में एक लाल गुब्बारा लिया मधुआ का सौतेला बाप निकला। मधुआ दौड़ते हुए अपनी माई के आगे उसे बचाने के लिए खड़ा हो गया जिसके रोने की वजह से आंखो और नाक से अपनी गिर रहा था और चेहरे पर धूल सनी हुई थी मधुआ का सौतेला बाप मधुआ के पास चलके आया और अपने घुटनों के बल बैठे हाथो से मधुआ का चेहरा साफ़ कर देता है और अपने हाथ में लिए हुए उस लाल हवादार गुब्बारे को मधूआ को थमा देता है जिसे देख मधुआ के चेहरे से सारी घबराहट छू मंतर हो जाती है और एक प्यारी सी मुस्कान होंठो पर तैर जाती है , मधुआ अपने हाथ में लिए घोड़े को वहीं जमीन पर छोड़ वो गुब्बारा थाम लेता है वहीं गांव से सभी नन्हे बालक मधुआ के सौतेले बाप को देख खुशी से नाचने लगते है और भागते हुए अपनी अपनी माई के पास जाते है ताकि वो भी उन्हे मधुआ जैसा सौतेला बाप लाकर दे सके।
कहानी जारी है , रोज शाम में इसके नए अध्याय आयेंगे।
Arti khamborkar
19-Dec-2024 04:09 PM
superb
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RISHITA
06-Aug-2023 10:02 AM
Nice part
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HARSHADA GOSAVI
03-Jul-2023 03:29 PM
nice
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